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सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि आर्थिक, राजनीतिक, कानून के शासन और सुशासन की दिशा में बढ़ते राष्ट्र को न सिर्फ वर्दी वाली सेना की जरूरत है, बल्कि देश के भीतर व बाहर दोनों जगह अपने हितों की लगन एवं समझदारी से रक्षा करने के लिए विशेषज्ञों की 'सिविलियन आर्मी' की भी जरूरत है।
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नए केंद्रीय विद्यालयों और नवोदय विद्यालयों को खोलने की घोषणा के बाद केंद्र सरकार जल्द ही देश में नए विश्वविद्यालयों और कालेजों को खोलने की घोषणा करेगी। इसकी तैयारी शुरू हो गई है। इन संस्थानों को उन राज्यों और जिलों में खोला जाएगा, जिनका उच्च शिक्षा का सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) राष्ट्रीय औसत से कम है या जहां उच्च शिक्षा हासिल करने योग्य आबादी यानी 18 से 23 वर्ष की उम्र के प्रति एक लाख युवाओं पर इनकी संख्या काफी कम है। जोईआर का निर्धारण 18 से 23 उम्र के प्रति सौ बच्चों के आधार पर किया जाता है। इन मानकों पर बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा व छत्तीसगढ़ जैसे राज्य फिट बैठ रहे हैं। क्षमता विकास के लिए बड़ी संख्या में उच्च शिक्षण संस्थानों को अपग्रेड करने की भी योजना है।
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तीन ऐतिहासिक लड़ाइयों से भारतीय इतिहास की दिशा तय करने वाले पानीपत से अब महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए नया द्वार खुलेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारतीय जीवन बीमा निगम की बीमा सखी योजना लांच करेंगे, जिससे गांवों की महिलाओं को बीमा क्षेत्र में करियर बनाने का शानदार मौका मिलेगा। करीब एक लाख महिलाएं इस कार्यक्रम की साक्षी बनेंगी।
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भारत में तेजी से बढ़ती जनसंख्या को गरीबी और पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार माना जाता रहा है। इस पर अंकुश लगाने के लिए ही सरकार ने सदी के सातवें दशक में हम दो, हमारे दो का नारा देकर लोगों को परिवार नियोजन के प्रति जागरूक किया। देश में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता बढ़ने और शहरीकरण की वजह से इसका असर भी दिख रहा है और जनसंख्या वृद्धि में तेजी से गिरावट आई है। कुछ समुदायों में तो कुल प्रजनन दर (टीएफआर) घट कर रिप्लेसमेंट रेट 2.1 प्रतिशत से भी नीचे चली गई है।
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विश्व के कई देश जहां बढ़ती आबादी से परेशान है तो कुछ देश देश घटती आबादी काम करने वालों की कमी से जुड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। जनसंख्या शिक्षित और कुशल है तो वह बोझ नहीं, संसाधन है। किसी देश में कार्यशील जनसंख्या यानी 14 से वर्ष से अधिक और 60 वर्ष से कम उम्र के लोगों की संख्या अधिक होती है, तो उस देश में काम करने वालों की उपलब्धता का अनुपात अधिक होता है। वहीं, जिन देशों में कुल जनसंख्या में बुजुर्गों की हिस्सेदारी अधिक होती, वहां इसे एक चुनौती के तौर पर देखा जाता है। इसलिए कई देश युवाओं की आबादी बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं।
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यह डर कि 2.1 प्रतिशत से कम प्रजनन दर (टीएफआर) वाला समाज धरती से गायब हो सकता है, पूरी तरह से निराधार है। देश खत्म हो जाएगा इस आशंका में परिवार बढ़ाने की बात करना मौलिक रूप से गलत है। यह महिलाओं की स्वायत्ता को कमजोर करने के साथ उन नीतिगत उपायों की भी अनदेखी करता है, जिनकी भारत को अपनी जनसांख्यिकीय चुनौतियों से निपटने के लिए जरूरत है। भारत की जनसंख्या चिंता की बात नहीं है, बल्कि इस पर सावधानी से विचार करने की जरूरत है।
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सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों के लिए घोषणा पत्र जारी करने के लिए एक निश्चित गाइडलाइन तय की है, लेकिन इसका उन पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। देश में ऐस कोई कानून नहीं है जिससे घोषणा पत्रों में की जाने वाली घोषणाओं की नियंत्रित किया जा सके। अभी सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ राजनैतिक दलों द्वारा वितरित मुफ्त उपहारों पर प्रतिबंध लगाने के लिए दायर याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है। न्यायालय की जल्द ही इस मामले की सुनवाई पूरी कर इस बढ़ती बीमारी का इलाज करना चाहिए।
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हमारे देश में प्रतिभा और क्षमता से भरपूर 10 करोड़ से अधिक महिलाएं देश की अर्थव्यवस्था में व्यवस्थित रूप से समुचित योगदान देने से वंचित हैं। यह एक कड़वी सच्चाई है, जहां महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) मात्र 25 प्रतिशत है। इस आंकड़े की तुलना यदि हम वैश्विक स्तर पर करें तो यह बहुत ही कम है। यह केवल एक सामाजिक अन्याय नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण आर्थिक बाधा है, जो गरीबी के चक्र को कायम रखती है और देश की विकास क्षमता में बाधा डालती है। एक संबंधित अध्ययन में कम महिला एलएफपीआर और अगली पीढ़ी में कम शैक्षणिक उपलब्धि के बीच संबंध को दर्शाया गया है, जो एक सामाजिक समस्या भी है। वस्तुतः इस अध्ययन में पता लगाया गया है कि महिलाओं को कार्यबल में पूरी तरह से एकीकृत करना न केवल सही कार्य है, बल्कि भारत के आर्थिक उत्थान के लिए एक रणनीतिक अनिवार्यता भी है।
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बीमा क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआइ वाला बीमा संशोधन विधेयक संसद के चालू सत्र में पेश नहीं हो पाएगा। सूत्रों ने कहा कि विभिन्न संगठनों से मिली टिप्पणियों के बाद मसौदा विधेयक में कुछ संशोधन की जरूरत हो सकती है। उन्होंने बताया कि समय की कमी को देखते हुए चालू सत्र में विधेयक पेश करना मुश्किल है, हालांकि यह बजट सत्र में आ सकता है।
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भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) प्रवाह अप्रैल 2000 से सितंबर 2024 के दौरान 1,000 अरब डालर (एक ट्रिलियन डालर) को पार कर गया है। इससे वैश्विक स्तर पर सुरक्षित और प्रमुख निवेश गंतव्य के रूप में देश की प्रतिष्ठा को मान्यता मिलती है।
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कोरना काल के दौरान देश के राजकोषीय संतुलन की स्थिति बिगड़ गई थी जो अब काफी हद तक काबू में है। ऐसे में उद्योग जगत चाहता है कि सरकार ना सिर्फ राजकोषीय स्थिति को सुधारने की और कोशिश करे बल्कि अगले 10 से 25 वर्षों को ध्यान में रखते हुए राजकोषीय नीति तैयार करे।
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